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देवनागरी लिपि और संगणक टाइपिंग

भारतीय संविधान में 22 भारतीय भाषाओं का उल्लेख किया गया है। हिन्दी को भारत की राजभाषा होने का अवसर मिला है। सबसे अधिक बोली जाने वाली यह भाषा 'देवनागरी लिपि' में लिखी जाती है। देवनागरी 'ध्वनिमूलक लिपि' है। 'ध्वनिमूलक लिपि' के दो भेद होते हैं - अक्षरात्मक (syllabic) और वर्णात्मक (alphabetic) 'अक्षरात्मक लिपि' में कोई भी 'चिह्न' स्वर और व्यंजन के मेल से बनता है। जैसे - 'ट' में दो वर्ण (ट् + अ) मिले हुए है। स्वर का उच्चारण हम स्वतंत्र रूप से कर सकते हैं, परन्तु व्यंजन के उच्चारण में स्वर की सहायता लेनी पड़ती है। इसके विपरीत 'वर्णात्मक लिपि' में अक्षर-चिह्न केवल एक ही 'अक्षर' दर्शाता है। उदाहरण के तौर पर अंग्रेजी भाषा को ही लीजिए। वह 'रोमन लिपि' में लिखी जाती है। उसके 'T' अक्षर में केवल 'ट' ही है। देवनागरी लिपि में 52 ध्वनियाँ हैं। 13 स्वर, 35 व्यंजन, और 4 संयुक्ताक्षर हैं। ध्वनि के उच्चारण समय को 'मात्रा' कहते है। इसी आधार पर मात्रा के 'ह्रस्व' और 'दीर्घ' भेद किए गए हैं। व्यंजन के बाद स्वरों के बदले हुए रूप में लगाए जाते हैं। स्वरों की मात्राएँ हैं:- ा , ि , ी , ु , ू , ृ , े , ै , ो , ौ आदि। 'संयुक्त व्यंजन' में दो या अधिक व्यंजनों का मिलाप होता है। जैसे - क् + ष = क्ष, त् + र = त्र, ज् + ञ = ज्ञ , श् + र = श्र आदि। खड़ी पाई वाले व्यंजनों का संयुक्त रूप खड़ी पाई को हटाकर बनाया जाता है - ख्याति, प्यार, न्याय, व्यंजन, स्वाद आदि। कुछ संयुक्ताक्षरों में कुछ वर्ण जैसे - ङ, ट, ठ, ड, ढ, द, ह आदि हलन्त ( ् ) लगाकर बनाए जाते हैं - वाङ्मय, चिह् न, जिद् दी आदि। 'र' के विविध रूप भी दिखाई देते हैं - र् + च = र्च या क् + र = क्र या ट् + र = ट्र आदि। क से लेकर प वर्ग के अंतिम वर्ण ( ङ, ञ, ण, न, म ) को 'अनुनासिक व्यंजन' कहते हैं। इसका चिह्न 'अनुस्वार' ( ं ) है। जैसे - गङ्गा (गंगा), पञ् च (पंच), पण्डित (पंडित), हिन्दी (हिंदी), दम्भ (दंभ) जब किसी स्वर के उच्चारण में मुख और नासिका का प्रयोग होता है, तब उस अक्षर पर अनुनासिक चिह्न 'चंद्रबिंदु' ( ँ ) दिया जाता है। जैसे - चाँद, आँख, छाँव आदि।

- रोहिणी परूलेकर