श्रवण

HEARING

श्रवण

श्रवण याने सुनना। भाषा का यह दूसरा कौशल है।

किसी भाषा को जब हम सुनते हैं तब हम कुछ ग्रहण करते हैं अर्थात् कुछ लेते हैं। यदि सुनी हुई भाषा से हम परिचित होते हैं तो ध्वनियों को सुनकर उसका अर्थ लगा लेते हैं। लिखा हुआ पाठ तो हम पढ़ सकते हैं परंतु बोलते वक्त मुख से निकली भाषा हम जैसे ही सुनते हैं गायब हो जाती है। इसीलिए उसे ध्यान से सुनना पड़ता है। बोलते वक्त कुछ शब्दों पर जोर दिया जाता है ताकि उसका सही अर्थ हम जान सके। कभी-कभी तो केवल एक 'शब्द' ही संवाद के लिए काफी होता है। इसप्रकार बोलते समय संवाद की भाषा में विचारों का नियोजन क्रमबद्धता से हो यह आवश्यक नहीं होता। बोलते वक्त बार-बार रुकना, एक ही शब्द को फिर-से दोहराना, संकोच ध्वनि तथा विषय-परिवर्तन आम बात होती है। आसान शब्द तथा व्याकरण के नियमों से यह भाषा मुक्त होती है। व्यक्ति अलग-अलग उद्देश्य से सुनकर इस कौशल में कुशलता हासिल कर सकता है।