भाषण
मलाला यूसुफज़ई
आतंकवाद के खिलाफ़ संघर्ष का प्रतीक बनी, पाकिस्तान की बहादुर बेटी मलाला ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कहा था- 'हमारे शब्द दुनिया बदल सकते हैं।' उस भाषण के महत्त्वपूर्ण अंश-
मैं नहीं जानती, कहाँ से अपनी बात शुरू करूँ। मैं यह भी नहीं जानती कि लोग मुझसे क्या सुनने की अपेक्षा कर रहे हैं। प्यारे भाइयो और बहनो, एक बात हमेशा याद रखिएगा। 'मलाला दिवस' मेरा दिन नहीं है। यह उस हर महिला, हर लड़के और लड़की का दिन है जिसने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठायी है। ऐसे सैकड़ों मानव-अधिकार कार्यकर्ता हैं, जो शिक्षा, शांति और सफलता के लक्ष्यों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हज़ारो लोग आतंकवादियों के हाथों मारे गये हैं, लाखों घायल हुए हैं। मैं उन्हीं में से एक हूँ।
आज मैं अनेक लड़कियों में से एक के रूप में यहाँ खड़ी हूँ। मैं अपने लिए नहीं, हर लड़की, हर लड़के के लिए बोल रही हूँ। मैं इसलिए आवाज़ नहीं उठा रही कि मैं शोर कर सकूँ, मैं इसलिए आवाज़ उठा रही हूँ ताकि उनकी आवाज़ सुनी जा सके जिनके पास आवाज़ नहीं है। जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं।
बहनो और भाइयो, अंधेरे में ही हमें उजाले का महत्त्व पता चलता है। जब हमें चुप कराया जाता है तभी हमें अपनी आवाज का पता चलता है। इसी तरह, पाकिस्तान के उत्तर में स्वात घाटी में हमने जब बंदूकों को देखा, तभी हमें कलम और किताब की महत्ता समझ में आयी। दोस्तों 9 अक्टूबर 2012 को तालिबान ने मेरे माथे पर गोली मारी थी। मेरे दोस्तों पर भी उन्होंने गोलियाँ चलायीं। उन्होंने सोचा होगा, हम चुप हो जायेंगे, पर वे असफल रहे। मेरे जीवन में कोई बदलाव नहीं आया, सिवाय इसके कि मेरी कमज़ोरी, भय और निराशा मर गयी। ताकत और साहस का जन्म हुआ। मैं वहीं मलाला हूँ।
आइए हम अशिक्षा, गरीबी और आतंकवाद के खिलाफ़, कलम और किताब को हथियार बनायें। ये सबसे ताकतवर हथियार हैं। एक बच्चा, एक अध्यापक, एक कलम और एक किताब दुनिया बदल सकते हैं। शिक्षा ही एकमात्र समाधान है।
साभार : नवनीत हिंदी डाइजेस्ट , अगस्त 2013